यद्यपि मन्दिर के निर्माण का ठीक से कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। किन्तु ऐसा विधित है कि इस मन्दिर का निर्माण महाभारत काल के बाद पाण्डवों के द्वारा किया गया । यह निर्विवाद सत्य है कि लगभग 80 फीट ऊँचे
इस विशाल मन्दिर में वास्तुकला का सुन्दर प्रदर्शन है । मन्दिर में प्रयुक्त पत्थर स्थानीय हैं जो कि तराशे गये हैं एवं मन्दिर का स्वरूप चतुष्कोणात्मक है।
मृंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग एक वृहद् शिला के रूप में विद्यमान है । गर्भ-गृह के बाहर मां पार्वती जी की पाषाणमूर्ति है तथा सभामण्डप में पंच
पांडव, श्री कृष्ण एवं मां कुन्ती जी की मूर्तियां हैं । मुख्य द्वार पर गणेश जी और श्री नन्दी जी की पाषाण मूर्तियाँ
हैं । परिक्रमा पथ में अमृत कुण्ड तथा है | इसी पथ के पूर्व भाग पर भैरवनाथ जी की पाषाण मूर्ति है तथा
लगभग 50 मीटर उत्तर-पश्चिम की ओर शंकराचार्य समाधि है जिसका वर्ष 2021 में शंकराचार्य की नई मूर्ति प्रतिस्थापित की गई है ।
मुख्य मन्दिर से लगभग 200 मीटर पूर्व की ओर केदार क्षेत्र के रक्षक भगवान भैरव जी की पाषाण मूर्ति एक नव्यशिला पर प्रतिष्ठित है । श्री केदारनाथ मन्दिर में भगवान के ज्योर्तिलिंग की पूजा
अर्चना सभी यात्री स्वयं अपने हाथों से स्पर्श करके कर सकते हैं । यात्रियों की सहायता हेतु पूजा कराने के लिए
आचार्य वेदपाठी नियुक्त हैं तथा भगवान की नित्य नियम पूजा हेतु वीरशैव जंगम सम्प्रदाय के पुजारी नियुक्त है। श्री केदारनाथ जी की पूजा शैव पद्धति से की जाती है ।
उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद रूद्रप्रयाग के उत्तरी भाग में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य भारत के द्वादस ज्योतिर्लिंग में श्री केदारनाथ एकादश ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात है तथा हिमालय में स्थित होने से सभी ज्योतिर्लिंगों में सर्वोपरि है।
यद्यपि मन्दिर के निर्माण का ठीक से कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। किन्तु ऐसा उल्लेख मिलता है इस मन्दिर
का निर्माण महाभारत काल के बाद पाण्डवों के द्वारा किया गया है । यह निर्विवाद सत्य है कि लगभग 80 फीट
उंचे इस विशाल मन्दिर में वास्तुकला का सुन्दर प्रदर्शन है । मन्दिर में प्रयुक्त पत्थर स्थानीय हैं जो कि तराशे
गये हैं एवं मन्दिर का स्वरूप चतुष्कोणात्मक है। मृंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग एक
वृहद् शिला के रूप में विद्यमान है । गर्भ-गृह के बाहर मां पार्वती जी की पाषाणमूर्ति है तथा सभामण्डप में पंच
पांडव, श्री कृष्ण एवं मां कुन्ती जी की मूर्तियां हैं । मुख्य द्वार पर गणेश जी और श्री नन्दी जी की पाषाण मूर्तियाँ
हैं । परिक्रमा पथ में अमृत कुण्ड भी स्थापित है |
केदारनाथ मन्दिर की उत्पत्ति का वर्णन महाकाव्य - महाभारत में उल्लेखित है। द्वापर-युग में महाभारत युद्ध के
उपरान्त गोत्र हत्या के पाप से पाण्डव अत्यन्त दुःखी हुये और केदार क्षेत्र में भगवान शिव के दर्शनार्थ आये ।
भगवान शिव गोत्र-घाती पाण्डवों को प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देना चाहते थे अतएव वे मायामय महिष का रूप धारण
कर केदार में विचरण करने लगे । पाण्डवो को बुद्धियोग से ज्ञात हो चला कि महिष के रूप में भगवान शंकर हैं
तो पाण्डव महिष का पीछा करने लगे । यह जानकर महिष रूपी भगवान शिव भूमिगत होने लगे तो पाण्डवों
ने दौड़कर महिष के रूप में अवतरित भगवान शिव की पूंछ पकड़ ली और विनम्र प्रार्थना अराधना करने लगे । पाण्डवों की प्रार्थना को सुनकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न और महिष के पूष्ठ भाग के रूप में भगवान शंकर श्री
केदारनाथ में अवतरित हो गये और भूमि में विलीन भगवान का श्रीमुख नेपाल में पशुपतिनाथ के रूप में प्रकट
एवं स्थापित हुये । तत्पश्चात आकाशवाणी हुई कि श्री केदारनाथ में पूजा करने से तुम्हारे सारे मनोरथ पूर्ण होंगे
तत्पश्चात पाण्डवों द्वारा विधिवत पूजा अचना की गयी जिसके बाद वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुये और उनके
द्वारा भगवान श्री केदारनाथ जी के विशाल एवं भव्य मन्दिर का निर्माण किया ।